जीएसबी सेवा किंग्स सर्कल को मुंबई के सबसे आमिर गणेश पंडाल का दर्जा प्राप्त है। यह स्वर्ण गणेश के नाम से भी जाना जाता है, यहाँ की गणेश मूर्ति 60 किलोग्राम से अधिक सोने के आभूषणों से सजी है।
इस मंडल की स्थापना 1954 में कर्नाटक के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण समुदाय द्वारा की गई थी। भव्य गणेश उत्सव का आयोजन और विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों का संचालन इस समुदाय द्वारा मुंबई शहर और गणपति में उनकी श्रद्धा का प्रतिक है।
इस समुदाय का मानना है की मुंबई शहर और गणपति की कृपा से उन्होंने समृद्धि प्राप्त की है।
मंडल कई बातो का विशेष रूप से धयान भी रखता है जैसे की पुरे समय पंडाल में चलने वाला संगीत पारंपरिक भारतीय संगीत वाद्ययंत्र द्वारा उत्पन्न होता है,
बड़ा गणपति इंदौर – जैसा की नाम से प्रतीत होता है बड़ा गणपति मंदिर में श्री गणेश की विशाल मूर्ति है। मूर्ति की बड़े आकर के कारण भक्तों ने इसका नाम बड़ा गणपति ही रख दिया। बड़ा गणपति मंदिर की स्थापना 1875 में (उज्जैन) निवासी श्री दाधीच के सपने के कारण हुई।
इस मंदिर की मूर्ति के निर्माण में अनेक प्रकार की वस्तुओं को सम्मिलित किया गया जैसे की पंचरत्न का चूर्ण: जो की हीरा, पन्ना, मोती, मानेक और पुखराज को मिला के बनाया गया, सभी प्रमुख तीर्थ स्थानों से लाया गया पवित्र जल, धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, पीतल और लोहे का मिश्रण, सात पवित्र स्थानों अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका की मिटटी, तीन पवित्र जानवरों गाय, घोडा और हाथी के रहने के स्थान की मिटटी, दो खाने की चीज़ों मिश्रण गुड़ – मेथी दाना से बना मसाला, और ईंट, चूना पत्थर।
बंगलुरु से मैसूर जाते हुऐ महामेरु पंचमुखी गणेश मंदिर रास्ते में आता है और काफ़ी दुर से ही मंदिर को देखा जा सकता है।
जैसा की नाम से ज्ञात होता है महामेरु पंचमुखी गणेश मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा के पाँच मुख हैं जो की चार दिशाओं की ओर देखते हैं।
श्री गणेश का पाँचवा मुख सब ऊपर की ओर है और मन्दिर दे द्वार की दिशा की ओर है। मंदिर के ऊपर क्षितिज पर पंचमुखी गणेश की यह विशाल प्रतिमा है जो की पूर्ण रूप से सुनहरे रंग की है।
इसी प्रकार मंदिर के अंदर भी श्री गणेश की पंचमुखी प्रतिमा स्थापित की गयी है जो की काले पत्थर से निर्मित है।
श्री गणेश के लाखों भक्त है और गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में भारत वर्ष के लगभग हर घर में गणपति जी की स्थापना की जाती है। हर घर गणेश, घर घर गणेश।
और जैसे की स्थापना की जाती है वैसे ही चतुर्थी की समाप्ति पर सभी भक्त गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन भी करते हैं। गणेश विसर्जन प्रतिक है बदलाव का।
किन्तु विसर्जन की प्रक्रिया में हम सभी को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की हमने केवल इको-फ्रेंडली प्रतिमा ही स्थापित की हो जो की पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए।
इको-फ्रेंडली प्रतिमा पर्यावरण के लिए तो अच्छी होती ही है साथ ही हमे भी श्री गणेश के आशीर्वाद को सदा के लिए हमारे पास रखने की आज़ादी भी प्रदान करती है।
श्री गणेश सभी के चहेते भगवान हैं और वे भी अपने भक्तों को बहुत प्यार करते हैं। किन्तु कई बार भक्त ऐसी दुविधा में फसं जाता है की समझ नहीं आता की क्या करे और क्या ना करे, ऐसी ही एक दुविधा है जब भूल-वश श्री गणेश की मूर्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है।
अगर श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करने से पहले क्षतिग्रस्त हो जाती है तो क्षतिग्रस्त मूर्ति को नयी मूर्ति से प्रतिस्थापित कर दीजिये और क्षतिग्रस्त मूर्ति को पुर्ण श्रद्धा के साथ पानी में विसर्जित कीजिए।
अगर मूर्ति स्थापना के बाद क्षतिग्रस्त हो जाये तो चावल के दाने डाल उसे विसर्जित कर देना चाहिए। मूर्ति अगर गणेश चतुर्थी के तीसरे या चौथे दिन क्षतिग्रस्त हो जाए तो आप गणेश प्रतिमा को किसी भी आने वाले दिवस पर पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ क्षति को अनदेखा के सभी पूजा प्रक्रिया करते हुऐ विसर्जित कर दें।
पुरे युरेशिया (यूरोप और एशिया) में स्वस्तिक पुरातन धार्मिक चिन्ह के रूप में जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को देवत्य और आध्यात्मिकता के प्रतिक के रूप में उपयोग किया जाता रहा है।
1930 के दशक तक पश्चिमी दुनिया में स्वस्तिक शुभ और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था,
किन्तु हिटलर और नाज़ीयों के अपनाने के बाद से स्वस्तिक आर्यन पहचान के प्रतीक के रूप में जाना जाने लगा और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से पश्चिमी दुनिया के अधिकांश लोग इसे नाजीवाद से जोड़ के देखने लगे।
यह स्वयंभू गणपति रणथंभौर जंगल में एक पहाड़ की चट्टान से प्रकट हुआ है जो समुद्र तल से 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मन्दिर स्वयंभु इसलिए कहा जाता है क्यूंकि मंदिर में पूजी जाने वाली प्रतिमा किसी कलाकार द्वारा है नहीं बनाई गयी है, बल्कि श्री गणेश का चेहरा और की सूंड का एक हिस्सा पहाड़ से अपने आप उत्पन्न हुआ है।
गणेश की आकृति के दोनों ओर उनके बेटे शुभ और लाभ और उनके साथ श्री गणेश की पत्नियाँ रिद्धि और सिद्धि भी दिकहि पड़ती हैं। श्री गणेश के पुरे परिवार के दर्शनों को यहाँ पांच देवता का दर्शन कहा जाता है। तीन आंखों वाले श्री गणेश का मंदिर के पुजारियों के अनुसार गणपति की तीसरी आँख बुद्धि का प्रतिनिधित्व करती है। श्री विष्णु की एक मूर्ति श्री गणेश के सामने है।
Here is very beautiful sketch of Ganesh. These Ganesha sketch are designed by the sketch Artist Sumeet kale during the period of ganesh chaturthi 2019.
बेकार की चीजों में से उत्तम सजावट
पानी की बॉटल – प्लास्टिक या कांच की पानी की बोतलें जो की हम उपयोग के बाद फेंक देते हैं उनको कलात्मक रूप से सजावट के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। गणपति के मुर्ति के पीछे और आसपास जमाई जा सकती हैं आप चाहें तो इनमे सीरीज लाइट लगा के या रंगीन पानी भर के और सूंदर बना सकते हैं।
पुरे विश्व में गणेश चतुर्थी को बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है और सभी गणेश भक्त 10 दिनों तक गणपति की बड़ी सेवा करते हैं। श्री गणेश, महादेव और पार्वती के छोटे पुत्र हैं और गणेश चतुर्थी गणपति के जन्म और उनके सम्मान में मनायी जाती है। गणपति जी का जन्म भाद्रप्रद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे हुआ था और इसलिए चतुर्थी तिथि इनकी प्रिय तिथि है। हर वर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और इसी दिन से 10 दिनों तक चलने वाले उत्सव गणेश चतुर्थी की शुरुआत होती है।
गणपति जी को १००८ से भी ज़्यादा अलग अलग नमो से (https://ghumteganesh.com/1008-names-ganesha/) जाना जाता है और उन्हें कला, विज्ञान, ज्ञान, समृद्धि, बुद्विमत्ता और वैभव कहा जाता है। भगवान गणेश को प्रथम पुज्य का स्थान प्राप्त है। गणेश उस देवता के रूप में माना जाता है, जिसे किसी अन्य देवता के प्रति अपना सम्मान देने या किसी भी अच्छे काम की शुरुआत करने से पहले पूजा करनी चाहिए।
जीवन में आनेवाली सभी विघ्न, आलस्य, रोग निवृत्ति, संतान, अर्थ, विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि, सिद्धि आदि की प्राप्ति के लिए गणेश जी की आराधना-अर्चना करने से सहज ही समस्त कष्ट दूर होकर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं। श्री गणेशजी के मंत्र जिनके जपने से गणपतिजी संतुष्ट होते हैं और आपकी समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं।
इन मंत्रों के साथ-साथ गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है।
श्री गणेश का बीज मंत्र– इनसे युक्त मंत्र- ॐ गं गणपतये नमः का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है। – ॐ वक्रतुंडाय हुम्
आगामी 2 सितम्बर 2019 को हम सभी के चहेते श्री गणेश का आगमन गणेश चतुर्थी के आरम्भ के साथ हमारे बिच होगा।
हर उम्र हर वर्ग और सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी गणपति जी का स्वागत बड़ी ही धूम-धाम और हर्ष उल्लास के साथ किया जायेगा।
गणेश चतुर्थी के लिए कई तरह के पकवान श्री गणेश के भोग के लिए बनाए जायेंगे, फूलों, लाइट, झालर, पंडाल आदि के द्वारा सजावट की जाएगी और गणेश चतुर्थी को भव्य रूप में मनाया जायेगा। गणेश चतुर्थी पुरे 9 दिन सब तरफ उत्सव का माहौल होगा।
इन सब के बिच हम सभी को इस बात का ध्यान रखना है की हम जो गणेश मूर्ति लाएं वो किसी भी तरह से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचती हो। हम चाहें तो घर में ही ईको फ्रेंडली गणेश जी की मूर्ति बना के स्थापित कर सकते हैं।
पहली कहानी ब्रह्माण्ड पुराण के उपगोष्ठ पाद से प्राप्त हुई है।
इसके अनुसार शिव भक्त परशुराम जो की विष्णु के अवतार थे उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन और उन से सम्बन्ध रखने वाले राजाओं को हराया था। वे इसी जीत का धन्यवाद देने के लिए शिव जी के द्वार पहुँचे थे।
परशुराम शिव जी को इन दुश्मनों से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए कृतज्ञ थे और महादेव को आदर पुर्वक धन्यवाद करना कहते थे।
जब परशुराम कैलाश पर्वत पहुँचे और महादेव के दर्शन करने की लिए बढ़े तो गणपति जी ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की महादेव देवी पारवती के साथ विश्राम कर रहे हैं और परशुराम उन्हें नहीं मिल सकते।
परशुराम और गणेश जी दोनों ही एक दूसरे से परिचित नहीं थे। बस इसी बात पर दोनों का विवाद हो गया जिसने की युद्ध का रूप ले लिया।
युद्ध में परशुराम ने शिव जी के दिए हुए फरसे से गणपति पर वॉर किया, चूँकि फरसा महादेव का था और उसका वॉर खाली नहीं जा सकता था गणपति जी ने अपने एक दाँत पर वॉर को लिया कर उनका दाँत टूट गया।
शिव पार्वती के विवाह में सम्मिलित होने और विवाह के बाद शिव पार्वती के दर्शन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। इतने सरे लोगो में कैलास पर्वत की ओर जाने के कारण दुनिया उत्तर की ओर झुकने लगी और धरती का संतुलन बिगड़ने लगा। असंतुलन को देखते हुऐ शिव जी ने ऋषि अगस्त्य से अनुरोध किया कि वे दक्षिण की ओर जाकर संतुलन बनाये। दक्षिण भारत पहले बहुत शुष्क हुवा करता था और वहां पानी की बड़ी समस्या थी। जब अगस्त्य ऋषि दक्षिण की ओर प्रस्थान करने वाले थे तो शिव जी ने उन्हें गंगा का कुछ पवित्र जल दिया। गंगा के जल को अगस्त्य ऋषि ने सावधानी से बर्तन में संरक्षित कर लिया।
पौराणिक कथा के अनुसार धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे।
श्री गणेश आभा मंडल देखते ही बनता था वे गंगा किनारे अपने समस्त अंगों पर चंदन लगा कर, पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पहन रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। गण्पति जी इतने सुन्दर दिख रहे थे की कोई भी उन पर मोहित हो जाता और तुलसी जी के साथ भी वही हुआ।
हम सभी अपने प्यारे विघ्नहर्ता गजानन्द को कई नामों से पुकारते हैं जैसे गजानन, विनायक, लंबोदर, गणपति, भालचन्द्र, सिद्दिविनायक , श्री गणेश की बात ही निराली है। हर भक्त इनसे इतना जुड़ाव और अपनत्व महसुस करता है की जो नाम उसे अच्छा लगता है प्रेम और श्रद्धा से उसी नाम से बुलाता है। जानते हैं श्री गणेश से जुड़ी 11 दिलचस्प बातें…
गणेश चतुर्थी को तीन चरणों में बाँट कर देखा जा सकता है। पहला चरण है आगमन इसमें भक्त गणपति की मूर्ति को मुर्तिकार या बाज़ार से अपने घर, कार्य स्थल या यूं कहें की आयोजन स्थल पर लाते हैं। आगमन की प्रक्रिया में भक़्त पूरी श्रद्धा से ढोल धमाकों के साथ श्री गणेश की मूर्ति को लाते हैं। मूर्ति के आयोजन स्थल पर पहुँचने के बाद दूसरा चरण जो की स्थापना का है शुरू होता है। स्थापना में भक़्त पूरी श्रद्धा और सारी पूजा की प्रक्रिया के साथ श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना करता है और मोदक, लड्डू का नवैद्य प्रस्तुत करता है।
किस युग में गणेश क्या कहलाये
हर युग में गणपति धरती पर पधारें हैं। हर युग की आवश्यकताओं के आधार पर, श्री गणपति के जो अवतार हुए हैं, वे हैं-
क्रतयुग (सत्ययुग)
महोक्तक विनायक जो की ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति से पैदा हुए थे। श्री गणेश के इस अवतार ने दो राक्षसों, देवंतक और नरंतक को मारकर धर्म की रक्षा की और फिर अवतार समाप्त कर दिया।
त्रेतायुग
में गणेश के रूप में उमा से श्री गणपति का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन हुआ। इस अवतार में, उन्होंने राक्षस सिंधु को मारा और देवता ब्रह्मा की बेटियों सिद्धि और बुद्ध से शादी की।
श्री गणेश सभी के चहेते भगवान हैं और वे भी अपने भक्तों को बहुत प्यार करते हैं। किन्तु कई बार भक्त ऐसी दुविधा में फसं जाता है की समझ नहीं आता की क्या करे और क्या ना करे, ऐसी ही एक दुविधा है जब भूल-वश श्री गणेश की मूर्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है।
अगर श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करने से पहले क्षतिग्रस्त हो जाती है तो क्षतिग्रस्त मूर्ति को नयी मूर्ति से प्रतिस्थापित कर दीजिये और क्षतिग्रस्त मूर्ति को पुर्ण श्रद्धा के साथ पानी में विसर्जित कीजिए। अगर मूर्ति स्थापना के बाद क्षतिग्रस्त हो जाये तो चावल के दाने डाल उसे विसर्जित कर देना चाहिए।
एक दिन देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर स्नान की तैयारी कर रही थी । देवी पार्वती ने नंदी (शिव के बैल) को दरवाजे की सुरक्षा करने और किसी को पास न आने देने के लिए कहा। पार्वती की इच्छा को पूरा करने का इरादा रखते हुए, नंदी ने ईमानदारी से उनका पद संभाला। लेकिन, जब शिव घर आए और अंदर जाना चाहते थे, तो नंदी ने उन्हें अंदर जाने दिया, क्योकि वह पहले शिव के प्रति वफादार था।
पार्वती नंदी से गुस्से में थी, लेकिन इससे भी अधिक, इस तथ्य पर गुस्सा थी कि उनके पास खुद का कोई वफादार था क्योंकि नंदी शिव के प्रति वफादार थे। अतः पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी का लेप (स्नान के लिए) किया और उसमें प्राण फूंकते हुए, उसने गणेश की रचना की, और उसे अपना निष्ठावान पुत्र घोषित किया। अगली बार जब पार्वती ने स्नान करने जाने से पहले उन्होंने दरवाजे पर गणेश को तैनात किया।
हिन्दू धरम शास्त्र के अनुसार किसी भी शुभ काम के करने से पहले गणेश पूजन आवश्यक है। इससे प्रसन्न होकर गणेश जी सारे काम निर्विग्न कर देते है|
हमने गौरी गणेश पूजा विधि इन हिंदी में बताई है जो की आप घर पर भी कर सकते है।सुबह जल्दी उठकर स्नान कर के साफ़ कपडे पहनकर ही गणेश पूजन करना चाहिए |
|| संपूर्ण गणेश पूजा ||
संपूर्ण गणेश पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लें | संकल्प करने से पहले हाथो में जल फूल या चावल ले| संकल्प में जिस दिन पूजन कर रहे है उस दिन, उस वार, तिथि ,उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोले|अब हाथो लिए गए जल को जमिन पर छोड़ दे|
भगवान गणेश को प्रथम पुज्य कहा जाता है। गणेश उस देवता के रूप में माना जाता है, जिसे किसी अन्य देवता के प्रति अपना सम्मान देने या किसी भी अच्छे काम की शुरुआत करने से पहले पूजा करनी चाहिए।
गणेश के जन्म से जुड़ी अलग-अलग कहानियां हैं। क्रोध में भगवान शिव ने अपने शरीर से गणेश के सिर को अलग कर दिया था, बाद में जब पार्वती जी ने हाथी के सिर पर जोर दिया तो भगवान शिव ने गणेश के शरीर पर डाल दिया। लेकिन गणेश का जो सिर काटा गया, शिव जी ने उसे एक गुफा में रख दिया। यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है। इसे पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है। सिर और पाताल भुवनेश्वर के बारे में विवरण पवित्र ग्रंथ स्कंद पुराण में भी पाया जा सकता है।
गणेश जी को बिठाने के लिए चौकी
लाल कपडा
जल कलश
पंचामृत
रोली , मोली , लाल चन
जनेऊ
गंगाजल
सिंदूर
चांदी का वक
लाल फूल और माला
इत्र
मोदक या लडडू
हरेमुंग
गुड़ और खड़ा धना
प्रथम पूजनीय श्री गणेश जी को विनायक, विघ्नेश्वर, गणपति, लंबोदर के नाम से भी जाना जाता हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।गणेश जी की पूजा साधना के लिए कुछ मंत्र जपे जाते है यहां पे आपको उसका अर्थ दिखाया गया है।
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ।।
अमेरिका में गणेश मंदिर – एक सौम्य ढलान वाली पहाड़ी के साथ तेरह एकड़ भूमि और जुलाई 1982 में बेलव्यू में एक शानदार दृश्य खरीदा गया था। 22 अगस्त, 1982 को गणेश चतुर्थी के दिन भूमि पूजन किया गया था। श्री गणेश मंदिरआधिकारिक तौर पर 14 अप्रैल, 1985 को खोला गया था।
श्री गणेश मंदिर श्री मुथैया स्थपति द्वारा डिजाइन किया गया था, और चोल वंश (900AD -1150AD) की मंदिर वास्तुकला जैसा दिखता है। मुख्य मंदिर परिसर, या चरण 2 का ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह नवंबर 1989 में हुआ, और बुनियादी निर्माण सितंबर 1990 में पूरा हुआ।