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Updated by Mithila Darshan on Apr 20, 2021
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Mithila Darshan

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मिथिला आ' मैथिलीक उत्थानक साक्षी - सम्पूर्ण पारिवारिक विनोदन - 'मिथिला दर्शन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड'
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प्रबोध साहित्य सन्मान 2019

प्रबोध साहित्य सन्मान 2019

Swasti Foundation
A Trust Devoted to the Cause of Education and Literary Development
Registered Off: 216, Sahyog Apartments, Mayur Vihar, Phase I, Delhi 110091
Camp Off: Village Sahmoura, P.O. Shahpur Bazar, Dt. Sararsa, Bihar

प्रबोध साहित्य सन्मान 2019
प्रेस विज्ञप्तिPRESS RELEASE

वर्ष 2019-का प्रबोध साहित्य सन्मान: कवि-अनुवादक हरेकृष्ण झा को
वर्ष 2019-के लिए मैथिली भाषा और साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ‘प्रबोध साहित्य सन्मान’ वरिष्ठ मैथिली कवि-अनुवादक-चिन्तक श्री हरेकृष्ण झा को दिया जायगा । यह निर्णय आज विख्यात भा-विज्ञानी, कवि-नाटककार और एमिटी विश्वविद्यालय के चेयर-प्रोफेसर एवं कला संकाय के डीन प्रो: उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ की अध्यक्षता में मैथिली के मूल तथा अनुवाद साहित्य में इनका आजीवन योगदान के आधार पर लिया गया है । प्रतीक चिह्न और प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये की राशि का यह पुरस्कार श्री हरेकृष्ण झा को रविवार, 24 फरबरी 2019-के दिन पटना में प्रदान किया जाएगा । उल्लेखनीय है कि प्रति-वर्ष ‘प्रबोध साहित्य सन्मान’ मैथिली आंदोलन के अग्रणी नेता,विशिष्ट विद्वान् तथा संस्कृत-फारसी-पाली-मैथिली और हिन्दी के मूर्धण्य भाषा-शास्त्री एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय के भूतपूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. प्रबोध नारायण सिंह के सन्मान में स्वस्ति फाउंडेशन द्वारा २००४ ई. से प्रदान किया जा रहा है ।
हरेकृष्ण झामैथिलीऔर हिन्दी के चर्चित कवि और विचारक रहे हैं।मानवीयसंवेदना और एक सभ्य समाज की तलाश में हरेकृष्ण जी अलग अलग समय में तकनीकीशिक्षा से लेकर अंग्रेजी सहित्य की पारम्परिक शिक्षा लेने की ओर कदम तोबढ़ाया पर कुछ रास नहीं आया।बामपंथ की ओर भी कुछ रुझान रहा।इस लिए अभियंत्रगणक का अध्ययन को उन्होंने बीच में ही छोड़ दिया और मार्क्सवादी राजनीति में सक्रिय हो गए । 70 के दशक में नक्सली आन्दोलन की ओर आकृष्ट हो कर अपनी औपचारिक शिक्षा छोड़ दिया था । पर मूल रूप सेहरेकृष्ण जी मैथिली और हिन्दी में मानवतावादी कवि के रूप में उभर कर आये हैं।मिथिला की सभ्यता और संस्कृति का उन्होने गहन अध्ययन किया है।पिछ्ले लगभग चालीस सालों से कविता लेखन के अलावा उन्होंने अनुवाद को अपने जीवनयापन का साधन बनाया।विश्व के दर्जनों संस्थानों के लिये आप अनुवाद करते रहेहैं ।संकलित रूप से उनकी रचनाएँ ज्यादा नहीं मिलती है, पर उनके सुपरिचित काव्य-संग्रह का नाम है – ‘ऐना त नहिं जे’(2006)।इस के दस साल बाद इनके मैथिली अनुवादकी पुस्तक प्रकाशित हुई है'ई थिक जीवन'।इस संग्रह में इन्होंने प्रसिद्धअंग्रेजी कवि वाल्ट व्हिटमैन की कुछ चुनी हुई कविताओं का अनुवाद किया है। साहित्य अकादमी के लिए इन्होंने ‘राजस्थानी साहित्य का इतिहास’का मैथिली अनुवाद किया है।अंग्रेजी से हिंदी में भी इनके कई महत्वपूर्ण अनुवाद प्रकाशित हुये हैं – जिनमें ‘कसौटी’ में प्रकाशित रणधीर वर्मा का उत्तर-आधुनिकता पर दीर्घ निबंध और पॉल फ्रेरे का आलेख आदि शामिल है; सहभागी विकास के सिद्धांतकार रोबर्ट चैम्बर्स की किताब ‘रूरल अप्प्रैसल: रैपिड, रिलैक्स्ड एंड पार्टीसिपेटरी’ का अनुवाद ‘ग्रामीण आकलन: तेज, सहज और सहभागी’ नाम से प्रक्सिस द्वारा प्रकाशित हुई है। प्रख्यात इतिहास विशेषज्ञ डी डी कोसाम्बी की किताब ‘द एक्जेस्पेरेटिंग एसेज’ का अनुवाद भी किया है। संगीत और चित्रकला में इनकी विशेष रूचि रही है।करीब दस साल तक
हरेकृष्ण जी ने जनपक्षीय सांस्कृतिक मंच ‘समय संकेत’ का संचालन किया है ।
हरेकृष्ण झाका जन्म 28 मार्च 1949 में कोइलख, दरभंगा मेंहुआ थाऔर वे रघुनाथ टोला, अनीसाबाद, पटना में रहते हैं।

प्रो: अभय नारायण सिंह
प्रबंधन न्यासी
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गंगासागर धन्य

गंगासागर धन्य माघ मे स्नानार्थी सब डूबकी देत ;
मकर-संक्राँतिक पुण्य पर्व मे उत्तरायण सूर्यक सुधि लेत।
नया वर्ष केर भेल पदार्पण अछिशिशिरक अवसानक काल;
आबि रहल रितुपतिक सवारी नील नभक प्रत्यासित भाल।
सृष्टि सँ स्निग्ध जुडल प्राणी केर तन-मन होएत स्वत: स्फूर्त;
व्यष्टि-व्यष्टि होइए समष्टि सँ तुलित-सम्पुटित पाबि मुहूर्त।
भारतीय मानसक उड़ान मे सागर लहरि भरि जाइछ छन्द;
लौकिक-सांस्कृतिक प्रभाष तैं युग-युग से चलि रहल अमन्द।
शब्द सुभग संक्रान्ति सुहावन लबइत अछि परिवर्तनक हिलोर;
मुग्ध माँगलिक विभा पसारति छूबि भू-गगनक ओर आ छोर।
जाडठाढ भएनहुँ समग्र अछि नहिं लघु वीचि-विचुम्बन मन्द ;
सुनि पदध्वनि अबइत आदित्यक उष्मा भरइत अछि आनन्द ।
शारदा नन्द दास परिमल

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मिथिला दर्शन समीपेषु

मिथिला दर्शन समीपेषु

मिथिला दर्शन समीपेषु

आदरणीय संपादक जी,
आखर लेख मे अपने सिराउर सँ उत्पन्न सीताक विवाह राम संग होयबाक तिथि केँ विवाह पंचमी क रूपमे मनाओल जयबाक चर्च कएलहुँ अछि। जे समयिक आ प्रासंगिक अछि मात्र मिथिले लेल नहि, अपितु सम्पूर्ण भारत आ विश्व लेल सेहो।
लाल दास कृत रामायणक माध्यम सँ ई देखेबाक प्रयास भेल अछि जे शक्तिक साक्षात स्वरूपा सीता रामक सिर्फ अर्धांगिनिए टा नहि, रामक बल, धैर्य, साहसकेँ अक्षुण्ण रखबा लेल अप्पन स्वक त्याग करैवाली नारि छलीह संगहि हुनक आस्था, त्याग, मर्यादा ओ पुरुषार्थक रक्षार्थ सदैव तत्पर रहैवाली संगरक्षिणी सेहो छलीह। जे अप्पन चिंता एको-आधो घड़ी लेल नहि करय आ अप्पन सर्वस्व 'रामत्व' लेल त्यागि दिअय,ओकरा की कहबै? प्रायः शब्दक अकाल परि जायत! रामनाम सँ पूर्व सीताक
उच्चरणे पर्याप्त अछि सीताक महिमाक गुणगान करबा लए। लालदास जी ओहिना नै सीताजीक महत्ता पर जोर दैत सीता केँ रामक शक्तिक रूपमे स्थापित करैत छथि। रामायण सँ जँ शक्तिक अपहरण कय लेल जाय, तँ रामायणक मर्यादा आ आदर्श कहियो पूर्ण नहि भय सकत। आ जें शक्तिक हरण भेलै तेँ पुरुषार्थ पराक्रमी भेल आ अहंक सर्वनाश भेल।
आजुक समाजकेँ दुनू चीज चाही, शक्ति संग मर्यादा। नै तँ मौब लिंचिंग आ कि कोनो अप्रिय घटनाक जन्म हेबे करय।
पटनाक कोनो गोष्ठीमे एक गोट स्थापित लेखक ओ कवि बाजल छलाह जे मिथिलाक लोक सीताक कष्ट आ दुःख देखि अप्पन बेटीक नाम 'सीता' नै राखय चाहैत अछि।
यद्यपि, कष्ट आ दुःख सँ केओ वंचित नै अछि।
सीताक अग्नि परीक्षा आ निर्वासन सँ लेखक दुखी हेताह। पुरुषवादी सत्ताक निर्णय सँ आहत हेताह। स्त्रीक दासता ल' क' चिंतित सेहो हेताह। मुदा, ई सभ आजुक लोक आ समाजक सोच अछि, नै कि ओइ दिनक। मर्यादाक रक्षा हेतु अप्पन सर्वस्व त्यागै वाली सीता आ राम केँ दुःख भेलनि आ कि सुख, एकर अनुमान केनाइ
हमरा सभ लेल असम्भव अछि। भगत सिंह, रामकृष्ण, विवेकानंद, सबरी, झांसीक रानी, ईशा मसीह, कबीर, गुरु नानक, सुदामा आदिकेँ देखि हमरा सभ कहि सकैत छियै जे ओ लोकनि बड्ड कष्ट सहलनि, मुदा जाहि आनंदक प्राप्ति हुनका लोकनि केँ भेलनि, तकर कल्पनो हम अहाँ नहि कय सकैत छी। तँ,जे सत्य होइछ ओकरा बेर-बेर अग्नि-परीक्षा देबय पड़ैत छैक। जेना सोना। सोना सत्य अछि। सीता सत्य छलीह, प्रकृति-शक्ति छलीह आ तेँ हुनक नाम शाश्वत अछि। तेँ, नाम रखबा मे कोनो भय आ हर्ज नहि। ईशा, भगत, मीरा, रामकृष्ण नाम सँ दुःख दूर होइछ। जेना प्रसव पीड़ाक बाद जननी केँ आनंदे आंनन्द छैक।
नारी स्वतन्त्रताक आंदोलन केनिहारिकेँ सीताक वैचारिक आ आध्यात्मिक स्वतन्त्रता सँ किछुओ सबक लेबाक चाही, नै कि कपड़ा आ मनमानी करबाक आजादी लेल नारी मुक्तिक नारा मजगूत करक चाही। पुरुषोकेँ रामक मर्यादा, पुरुषार्थ ओ त्यागसँ फेर स' सीख लेबाक आवश्यकता छैक। विवाह पंचमीक यैह सार्थकता अछि।
मनमोहना रे क स्वागत करैत दू गोट व्यंग्य रचना लेल धन्यवाद्। शरदिन्दु जी केँ बहुत दिनक बाद देखल। रवींद्र जी समया मे बैसल-बैसल हमरा यूरोप घुमा देलनि, ताहि लेल अपने संग हुनको धन्यवाद्। अर्पणा झाक रासनचौकी सुनबा मे नीक लागल। मुदा सुनय तँ पड़त डीजेए ने!

  • वीरेन्द्र नारायण झा समया, झंझारपुर Visit Our website http://mithiladarshan.com/
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